पालतू पशुओं में फोड़ा-फुन्सी का इलाज, फोड़ा-फुन्सी शरीर के किसी भाग में मवाद (पीव) इकट्ठा हो जाय तो उस भाग में सूजन, दर्द, गर्मी और लाली आ जाती है।
यह फोड़ा-फुन्सी पशुओ में कई तरह के बीमारीयों के कारण भी होता है, जैसे चेचक, लम्पी त्वचा रोग, चोट, बाल उखड़ जाने आदि।
पशुओं में फोड़ा-फुन्सी होने का कारण व लक्षण
फोड़ा-फुन्सी शरीर के किसी भाग में मवाद (पीव) इकट्ठा हो जाय तो उस भाग में सूजन, दर्द, गर्मी और लाली आ जाती है। यह फोड़ा – फुन्सी का रूप धारण कर लेती है। इसके फटने पर पीव निकलता है तथा दबाने पर काफी दर्द करता है, यदि फोड़ा गहरा होता है, तो जानवर को बुखार भी हो सकता है, चलने फिरने में कठिनाई हो सकती है। यदि फोड़ा – फुन्सी पुरानी हो जाती है तो कड़ी और ठण्डी हो जाती है। दर्द भी कम होता है किन्तु मवाद से पूरा भरा रहता है। ऐसी हालत में फोड़ा – फुन्सी का उपचार जल्दी करना चाहिए ।
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पशुओं में फोड़ा-फुन्सी का इलाज
प्राथमिक पशु चिकित्सा
(i) यदि फोड़ा हाल ही का हो, पीव न भरा हो तो उसे सेककर (गर्म पानी में नमक डालकर) अथवा रेड मरकरी मलहम या वेलाडोना की पट्टी लगा देना चाहिए जिससे फोड़ा शीघ्र पक जाय ।
(ii) पके हुए फोड़े में छोटा चीरा लगाकर पूरा मवाद बाहर निकाल देना चाहिए तथा उसमें टिचर आयोडीन की पट्टी भिगोकर भर देना चाहिए तथा उसकी रोज सफाई करनी चाहिए ।
(iii) फोड़े के घाव पर कीटाणु नाशक मलहम (टेरामाइसिन, सोफ्रामाइसिन क्रीम, हीमेक्स या नियोस्प्रीन ) लगाना चाहिए ।
(iv) यदि फोड़ा पका हो या उसे पक जाने पर किसी कीटाणु रहित चाकू या ब्लैड से चीर कर अन्दर का पीव निकाल देना चाहिए और पोटेशियम परमेगनेट या फिनाइल या सेवलॉन से साफ कर रूई से अच्छी तरह पौंछ देना चाहिए तथा कीटाणु नाशक मलहम रूई में लगाकर घाव में भरने के उपरान्त पट्टी बाँध देना चाहिए ।
(v) घाव पर कीटाणु नाशक दवा प्रतिदिन लगाना चाहिए इसके लिए ड्रेसिंग आयल ( तारपीन का तेल 3 मि०ली०, कार्बोलिक एसिड 4 मि0लि0, यूकेलिप्टस तेल 15 मि०ली० और अलसी का तेल 500 ग्राम सबको मिलाकर बनाया जाता है) सबसे उत्तम दवा
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