इस भाग में हम आपको पशुओ में पोषक तत्वों के अभाव वाले रोग (Nutrients Defficiency Diseases in animals) के बारे में बताने वाले है।
प्राथमिक पशु चिकित्सा के इस कोर्स में हम आपको पशु रोगों का वर्गीकरण के बारे में भाग एक में बता चुके है कि पशु में किस-किस प्रकार के बीमारी होता है और पशु के शरीर में कहा-कहा होता है।
पशु रोगों का वर्गीकरण (Classification of Animal Diseases)
चिकित्सा हेतु पशुओं के रोग
- बाहरी आघात और लघु शल्य चिकित्सा वाले रोग (External Injuries and Minor Surgical Diseases)
- असंक्रामक या सामान्य रोग (Non Infectious Diseases)
- संक्रामक या छूतवाले (संसर्गी) रोग (Infectious or Contagious Diseases)
- परजीवी रोग (Parasitic Diseases)
- त्वचा रोग (Skin Diseases)
- विष वाले रोग (Poisioning Diseases)
पहले ये पढ़े
- पशु रोगों का वर्गीकरण
- वेटरनरी मेडिसिन के संछिप्त नाम तथा उनका विवरण
- बीमार पशु के लक्षण
- स्वस्थ पशु के लक्षण
- प्राथमिक पशु चिकित्सा कोर्स
पोषक तत्वों के अभाव वाले रोग (Nutrients Defficiency Diseases)
पशु जो खाना खाते हैं उनका शरीर में आत्मीकरण होने के बाद कुछ ऐसे तरल पदार्थों की सृष्टि होती है जिनसे शरीर को काम करने की शक्ति मिलती है, टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत होती है, शरीर गर्म रहता है तथा शरीर की समस्त कियाओं का नियन्त्रण और नियमन होता है जिससे शरीर की वृद्धि और विकास होता है । ऐसे तरल पदार्थों को पोषक तत्व (Nutrients) कहते हैं।
इनकी कमी से शरीर अस्वस्थ हो जाता है तथा विकृत हो जाता है। इन पोषक तत्वों को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, जल, विटामिन, खनिज लवण तथा फोक (Roughage) कहते हैं।
01. प्रोटीन (Proteins)
यह कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन तत्वों से बनी होती है। इसमें गन्धक और फास्फोरस भी पाये जाते हैं। इनमें नाइट्रोजन एक मुख्य संघटक होता है जिससे एमीनो अम्ल बनता है।
शरीर द्वारा बहुत से एमीनो अम्ल स्वयं तैयार किए जाते हैं तथा कुछ एमीनो अम्लों का निर्माण शरीर में नहीं हो पाता जिन्हें बाहर से भोजन के माध्यम से लेना पड़ता है।
इन्हें अनिवार्य अमीनो अम्ल समझा जाता है जिनकी उपस्थिति के बिना शरीर में कई दोष हो जाते हैं। जैसे- दुधारू पशु का दूध कम हो जाता है, शरीर की रचना तथा वृद्धि रूक जाती है।
कार्य- (i) प्रोटीन से शरीर के तन्तुओं की वृद्धि होती है।
(ii) नयी कोशिकाओं का निर्माण होता है।
(iii) टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत या पुर्नजनन होता है।
(iv) शरीर में पाचक रस हार्मोन्स तथा एन्जाइम का निर्माण करते हैं।
(v) ऑक्सीजन का अवशोषण होता है।
(vi) मानसिक शक्ति बढ़ाता है।
(vii) आवश्यकतानुसार शरीर में गर्मी बढ़ाता है।
(viii) शरीर की रचना एवं वृद्धि के लिए आवश्यक है।
प्राप्ति के स्रोत वानस्पतिक प्रोटीन (Plant Protein) जैसे- चना, अरहर, मसूर, मूँग, सोयाबीन, मूँगफली, बादाम, अखरोट, गेंहूँ और मक्का आदि। प्राणी प्रोटीन (Animal Protein) जैसे- दूध, अण्डा, मांस, मछली आदि ।
02. कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates)
यह कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन के संयोग से बनते है।
कार्य- (i) इनसे शरीर में काम करने की शक्ति या ऊर्जा मिलती है।
(ii) शरीर को गर्म रखते है ।
(iii) ऑतो के कार्यों को बढ़ाते है । ( Promotes the functioning of Intestines )
(iv) प्रोटीन के अपचय (Destruction) को घटाते हैं।
(v) अधिक मात्रा में होने पर ग्लाइकोजेन ( Glycogen) के रूप में मांस पेशियों में जमा हो जाते हैं। जरूरत पड़ने पर फिर रक्त में मिल जाते है।
इनके कई यौगिक हैं जैसे माड़ी, शर्करा तथा सैल्यूलोज आदि । प्राप्ति के स्रोत- जैसे- गेंहूँ, जौ, मक्का, ज्वार, बाजरा, आलू, गन्ना, शहद, अंगूर, खजूर तथा मीदे फल दूध, हरी घास, आदि।
03. फैट (Fat)
यह कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोग से बनती है।
कार्य- (i) यह शक्ति का अनिवार्य स्रोत है।
(ii) यह अंगों की वृद्धि, विकास एवं स्वस्थ त्वचा, संरचना के लिए आवश्यक है।
(iii) यह प्रजनन पद्धति के लिए अनिवार्य है।
(iv) भोजन को स्वादिष्ट बनाती है।
(v) शरीर में उपस्थित विटामिन, ए० ई० डी० और के० को घोलती है।
प्राप्ति के स्रोत वानस्पतिक वसा जैसे- सोयाबीन, सरसों, राई, मूँगफली, अलसी, तिल, नारियल आदि । जन्तु या प्राणिज वसा जैसे- दूध, मछली, मांस, घी, मक्खन, चर्वी, मछली तेल आदि ।
04. जल ( Water )
यह हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक है। जल ही जीवन है क्योंकि इसी से मुख्य शारीरिक क्रियाएं सम्पन्न होती है।
इसके अभाव या अनुपस्थिति में जीवन सम्भव नहीं है। जल से भोजन पचता है। शरीर के विकार जल में घुलकर शरीर से मूत्र तथा पसीने द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
जल शरीर की गर्मी को सदैव सामान्य बनाये रखता है तथा रक्त को तरल बनाये रखता हैं जिससे वह सहजता से शरीर में प्रवाहित होता रहता है। शरीर के प्रत्येक तन्तु को मुलायम और लचीला बनाता है बिना जल के पदार्थ शरीर में घुलते नहीं हैं।
इसकी कमी से पाचन क्रिया ठीक से नहीं होती है, कब्ज हो जाती है, शरीर सुस्त व उदास हो जाता है तथा मूर्छा आ जाती है। अतः पशुओं को शुद्ध व ताजा जल पर्याप्त मात्रा में दिया जाना चाहिए।
शरीर की जलाभाव की स्थिति में डेक्ट्रोज लवण या ग्लूकोज लवण का घोल सुई द्वारा शरीर में चढ़ाया जाता है।
05. विटामिन्स (Vitamins)
यह कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन आदि मूल तत्वों के जटिल यौगिक हैं। ये प्राकृतिक रूप में कई पदार्थों में मिलते हैं।
इन्हें प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से भी तैयार किया जाता है। इनके बिना शरीर निरोग तथा स्वस्थ नहीं रह सकता है। इन्हें जीवन तत्व कहते हैं।
सभी शारीरिक जीवन क्रियाओं को चलाने के लिए भोजन में इनका रहना आवश्यक है। रासायनिक क्रियाओं में विटामिन एक उत्प्रेरक (Catalyst) के रूप में कार्य करते है।
इनकी उपस्थिति से शारीरिक प्रक्रिया सन्तुलित एवं तीव्र गति से होती है लेकिन इनमें कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं होता है ये ज्यों के त्यों बने रहते हैं। इन्हें बनावट तथा कार्य के आधार पर दो वर्गों में बाँटा गया है
1. वसा या चर्बी (Fat Soluble) में घुलने वाले- इनमें विटामिन ए, डी, ई, और के हैं।
2. जल में घुलने वाले ( Water Soluble ) – इनमें विटामिन बी-कॉम्पलैक्स, सी और पी है।
1. विटामिन ए (Vitamin A )-
यह शारीरिक वृद्धि विकास में सहयोग करता है। शरीर निरोग रहता है, पाचन शक्ति को ठीक करता है।
इसकी कमी से शारीरिक विकास रूक जाता है तथा आँख, नाक, कान तथा त्वचा के रोग हो जाते हैं। आँख लाल रहती है तथा पानी बहता है। आँख से धुंधला दिखाई देता है या रतौंधी (Night Blindness) हो जाती है।
पाचन शक्ति नष्ट हो जाती है। इसकी कमी से बॉझपन हो जाता है। यह आम, गाजर, पपीता, हरी सब्जियाँ, दूध, अन्डे में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
2. विटामिन बी-कॉम्पलैक्स (Vitamin B Complex) –
यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह विटामिनों का एक समूह है जिसे बी 1, बी 2, बी 6 बी 12 आदि नामों से जाना जाता है। इस वर्ग के सभी विटामिन पानी में घुलनशील हैं।
यह पाचन किया में सहायक होते हैं। पेशियों को मजबूत बनाते हैं। भूख बढ़ाते हैं, रक्त वृद्धि करते हैं, स्नाविक दुर्बलता ठीक करते हैं, बेरी-बेरी ( Beri – Beri) रोग से बचाते हैं। इनकी कमी से चर्म रोग हो जाता हैं बाल गिरने लगते हैं, आँखें सूज जाती हैं, रक्त वाहिनियाँ मोटी हो जाती हैं, शरीर का वजन घट जाता है, आमाशय एवं आन्त्रप्रदाह हो जाता है तथा शरीर में ऐंठन होती है
यह विटामिन मांस, मछली, अन्डे की जर्दी, दूध, अंकुरित अनाज, टमाटर, हरी सब्जियाँ, गेंहूँ तथा पनीर में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
3. विटामिन सी (Vitamin C ) या एस्कार्बिक एसिड (Ascorbic Acid)
इसकी कमी से दांत या हड्डियों के रोग हो जाते हैं, जोड़ों में दर्द भरी सूजन तथा कैल्शियम की कमी हो जाती है। तथा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है।
इसकी कमी से स्कर्वी (Scervy) रोग हो जाता है। यह अधिकतर खट्टे फलों, नीबू, ऑवला, टमाटर, अनानास, आम, पपीता, गोभी की पत्तियों तथा हरी साग सब्जियों में पाया जाता है।
4. विटामिन डी (Vitamin D ) या केल्सीफेरॉल (Calciferol) –
इसकी कमी से दांत कमजोर हो जाते हैं, हड्डियां टेडी और मुलायम हो जाती हैं, सूखा रोग (Rickets) हो जाता है। चर्म तथा आँखों के रोग हो जाते हैं।
कैल्शियम तथा फास्फोरस का उपापचय तथा अवशोषण नहीं हो पाता है, जिससे हड्डियों का निर्माण नहीं हो पाता है। यह खासकर वसा और तेल वाले पदार्थों में पाये जाते हैं। जैसे- मक्खन, घी, अन्डे की जर्दी, मछली आदि। इसे सूर्य के प्रकाश से भी प्राप्त किया जाता है। Manoh USE
5. विटामिन ई (Vitamin E or Anti Sterlity Vitamin) टोकोफेरोल (Tocopherol) –
यह वसा की दुर्गन्ध को रोकता है तथा विटामिन ए को स्थायी बनाता है यह बादाम, मक्खन, दूध, पनीर, अन्डा, अंकुरित गेहूँ तथा सब्जियों में पाया जाता है । इसके अभाव में प्रजनन असफल हो जाता है, गर्भ नहीं ठहरता है पेशियां कमजोर पड़ जाती है। नपुंसकता या बांझपन आ जाता है। kaam
6. विटामिन के (Vitamin K )
यह रक्त जमाव के लिए आवश्यक है इसके अभाव में रक्त बहाव चोट तथा कटे अंगों से जारी रहता है जिससे रक्त की शरीर से काफी क्षति हो जाती है।
दस्त तथा पेचिस आदि के रोग हो जाते हैं। यह विटामिन कार्ड लिवर ऑयल, सोयाबीन, हड्डी चूर्ण, यीस्ट, पालक, टमाटर, बथुआ, अन्डा तथा पनीर आदि में मिलता है।
7. विटामिन पी-पी (Vitamin P-P) –
इसकी कमी से त्वचा सूजकर कड़ी हो जाती है तथा कभी-कभी अतिसार भी हो जाता है। यह सेम, मटर, मक्का आदि में पाया जाता है।
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06. खनिज लवण (Mineral Salt) –
यह शरीर को स्वस्थ, निरोग, कार्य कुशल, अंगों की वृद्धि एवं प्रजनन कार्यों को सन्तुलित रखने में आवश्यक होते हैं। जैसे- कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह, आयोडीन, कॉपर, कोबाल्ट, सोडियम पोटेशियम, मैग्नीशियम और जिंक मुख्य होते हैं।
१. कैल्शियम (Calcium)
इसके द्वारा शरीर में निम्नलिखित कार्य होते हैं
- कैल्शियम के कारण रक्त जमता है।
- हड्डियों, दाँतों के निर्माण वृद्धि और विकास होता है।
- मांस पेशियां, आँत तथा हृदय की सक्रियता, संकुचन तथा प्रसार के लिए आवश्यक है।
- शरीर की रोग निरोधक शक्ति को बढ़ाता है।
२. फास्फोरस (Phasphorus) –
इसके महत्वपूर्ण कार्य हैं
- प्रोटीन का निर्माण करता है।
- रक्त में अम्ल तथा क्षार की मात्रा को सन्तुलित बनाये रखता है।
- इसके तथा कैल्शियम के सहयोग से हड्डियों तथा दिमाग का निर्माण होता है।
- रक्त के लाल कणों के निर्माण में सहायक होता है।
३. सोडियम (Sodium)
इसका महत्व शरीर में निम्नवत् होता हैं
- यह रक्तचाप की व्यवस्था और उसके सामान्य प्रवाह के लिए अनिवार्य है।
- यह कोशिकाओं के अन्तः द्रव्य को मुख्य भाग होता है।
- भोजन को रूचिकर बनाता है।
- इसकी अधिकता से नमक विष नामक पदार्थ के कारण पशु की मृत्यु भी हो सकती है।
- यह शारीरिक भार का सन्तुलन बनाये रखता है।
४. लौह (Iron) –
इसके पशु शरीर में निम्नलिखित प्रमुख कार्य हैं
- यह लाल रक्त कणिकाओं के हीमोग्लोबिन की रचना के लिए अति अनिवार्य खनिज है।
- इससे लाल रक्त कणों का निर्माण होता है।
- इसके अभाव से शरीर में रक्तहीनता हो जाती है।
- यह गाभिन पशुओं के लिए अति आवश्यक है।
५. आयोडीन ( Iodine ) –
इसका महत्व शरीर में निम्नवत् होता हैं
- यह शारीरिक तथा मानसिक विकास के लिए आवश्यक है।
- यह थाइराइड ग्रन्थि को नियन्त्रण में रखता है। इसके अभाव में ग्रन्थि बढ़ जाती है जिससे घेघा रोग हो जाता है।
- शरीर के बाल इसके अभाव में झड़ने लगते हैं।
६. कोबाल्ट (Cobalt) –
- यह विटामिन B12 के निर्माण में अनिवार्य होता है।
- भूख बढ़ाता है।
- इसके अभाव में रक्त की कमी हो जाती है।
- त्वचा के रूखेपन को बचाता है।
- इसके अभाव में स्नायुविक प्रदाह या दुर्बलता आ जाती है।
७. कॉपर या ताँबा (Copper ) –
- यह रक्त के हीमोग्लाकबिन (Haemoglobin) के निर्माण में काम आता है।
- यह ऊतकों में उपापचय क्रिया सम्पन्न कराता है।
- यह अस्थि निर्माण में भी सहयोग करता है।
- यह एन्जाइमों का अनिवार्य अंग है।
- इसके अभाव में रक्त अल्पता, हड्डियों में सूजन हो जाती है।
८. मैगनीशियम (Magnesium) –
यह मैगनीशियम सल्फेट या कार्बोनेट के रूप में मिलते हैं तथा-
- इसके अभाव में कार्पल (Carpal) और टार्सल (Tarsal) हड्डियों का विस्तार हो जाता है।
- इसके अभाव में ग्रास टेटनी ( Grass Tetany) रोग हो जाता है। इसे लैक्टेशन टेटनी भी कहते हैं जिससे पशु उत्तेजित रहता है, शरीर ऐंठता है तथा मांस पेशियाँ कॉपती हैं।
९. पोटेशियम (Potassium) –
- इसके अभाव से पेशियों में दुर्बलता और ऐंठन होती है।
- इसके अभाव से निचले अंगों में पक्षाघात हो जाता है।
१०. जिंक (Zink) –
यह सामान्य वृद्धि और ऊतकों की मरम्मत के लिए उत्तरदायी है, इसके अभाव में जख्म नहीं भर पाता है।
११. सेलीनियम (Selenium) –
यह पशुओं में बॉझपन को रोकने के लिए सबसे महत्वपूर्ण खनिज है, जिसकी कमी से पशु गर्मी पर नहीं आता, गर्भ नहीं ठहरता, बाँझपन तथा नपुंसकता आ जाती है। भोजन से इसके अवशोषण के लिए आहार में इसके साथ-साथ विटामिन ई का होना अत्यन्त आवश्यक है।
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